Friday 1 May 2020

प्रतीक्षा-2

तुम यूँ अचानक छोड़ गए
सब रिश्ते नाते तोड़ गए
अब गीत लिखूं किसकी खातिर
किसकी खातिर नग़मे गाऊँ
पर्वत सी पीड़ा आ पहुची
विपदा की क्रीड़ा आ पहुची
हुंकार भरूँ किस साहस से
किस साहस से लड़ने जाऊं।
गीतों में श्रृंगार तुम्ही से
जीत तुम्ही से हार तुम्ही से
पाषाण हृदय सा लगता है
था खुशियों का संचार तुम्ही से।
नीर अश्रु के बहते प्रतिपल
किसको अपनी व्यथा सुनाऊं
यादों की सरिता में गिरकर
लौह खंड सा डूबा जाऊं।
लौट आओ तुम किसी हाल में
विरह वेदना सही न जाती,
मायूस हृदय,जर्जर काया में
चेतनता धुंधलाती जाती।
चौखट पर बैठे बैठे
जीवन बीता जाता है
किन्तु तुम्हारे आने का न
कोई संदेशा आता है।
चौखट और प्रतीक्षा को
अपनी अंतिम नियति बनाऊं
जो न आये तुम प्रियतम
मैं न खुद चौखट बन जाऊं।

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