Monday 20 April 2020

अराजक

किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी
ठहरो इस हादसे की और भी खबरें आती होगी।

मरने और मारने वालों के अलावा भी कोई था
कुछ भी स्पष्ट नही,कहना भले साफगोई था।

इस आग का दीदार तो रोज होता है
फिर नया क्या है जो तू धीरज खोता है।

तुझे शौक है देखने का तो देख तमाशा
माथे पर शिकन क्यों है,क्यों है निराशा!

आगे अभी और भी खबरें आएगी
मानवता का ह्रास कर दिल दहलायेगीं।

इस अराजकता को टोक सकता है
तू जानता है,तू इसे रोक सकता है।

आत्म मुग्ध हो तुम्हे तो बस राज करना है।
हर सुदृढ़ व्यवस्था पर ऐतराज करना है।

फिर वर्तमान पर शोक का ये दिखावा क्यों
तुम्हारे भीतर क्रोध का इतना लावा क्यों!

सब्र करो यह तुम्हे भी अपनाएगी
मौत अपना किरदार जरूर निभाएगी।

                   -देवेंद्र प्रताप वर्मा'विनीत'