Sunday 26 June 2016

शिकवा न करो

परिस्थितियाँ कैसी भी हों कोई न कोई उम्मीद सदैव रहती है। यह उम्मीद ही जीवन जीने की प्रेरणा देती है। जीवन के किसी भी पड़ाव पर स्वयं को असहाय, बेसहारा नहीं समझना चाहिए क्योंकि हर अंधेरी रात के बाद एक सुनहरी सुबह है जो उन्नति की असीम संभावनाओ को समेटे हुए है।

शिकवा न करो ए दर्द-ए-दिल
वो वक्त भी एक दिन आयेगा।
खुशियाँ ही खुशियाँ होगी
तू गीत अमन के गाएगा।
जो बीत गया उसे याद न कर
आने वाले को बर्बाद न कर,
पलकों से मोती न बरसा
कलियों की तरह मुस्काए जा ,
जिसने तुझको हैं दर्द दिये
वो वक़्त ही खुशियाँ लाएगा ।
शिकवा न करो ए दर्द-ए-दिल
वो वक्त भी एक दिन आयेगा……….
माना कि सपने टूटे हैं
आशाओं के दामन छूटें हैं ,
नए सपने फिर से सजाकर तू
आशाओं के दीप जलाएजा,
खोया है तुझसे कल जो यहाँ
फिर तुझको मिल जाएगा ।
शिकवा न करो ए दर्द-ए-दिल
वो वक्त भी एक दिन आयेगा…………
जीवन नाम है जीने का
सुख दुख और खून पसीने का,
हँसकर इसे जीना सीख ले तू
चाहे मौसम आए रोने का,
साँसे तुझसे ये कहती हैं
जो मौत से हर पल लड़ती है,
जलते रहकर दीपक कि तरह
सबको उजियारा दे जाएगा।
शिकवा न करो ए दर्द-ए-दिल
वो वक्त भी एक दिन आयेगा।
———-देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

बात छोटी सी

रात छोटी सी
प्रियतम के संग
बात छोटी सी
बड़ी हो गई
रिवाजों की दीवार
खड़ी हो गई
बात छोटी सी
कलह की वजह
जात छोटी सी
हरी हो गई
उन्माद की फसल
घात होती सी
कड़ी हो गई
बदलाव की नई
मात छोटी सी
बरी हो गई
रोक तिमिर- रथ
प्रात छोटी सी
………देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

फरियाद-अमन की राह

कहीं है आग कहीं है धूआं,
कहीं किसी के सपनों का जल रहा है आशियाँ।
कोई किसी की याद मे आँसू बहा रहा है,
कोई किसी की छाव से दामन बचा रहा है।
मझधार मे कश्तियां साहिल की तलाश कर रही हैं,
टूटे दिलों की धड़कने फरियाद कर रही हैं।
नफरत को दिलों से दूर कर दो,
प्यार के रंग सबकी आँखों मे भर दो।
बनके दुश्मन जहां को जो जलाते रहे हैं,
जिंदगी से जिंदगी को मिटाते रहे हैं।
प्यार दो उनको इतना कि भूल जाए वो खुद को,
सज़ों ले आँखों मे प्यार के आशियाने हजारों।
भूल गए हैं जो चैन और अमन की जिंदगी,
प्रेम की राह पे उनको वापस पुकारो।
वो भी इंसान हैं हम भी इंसान हैं,
फिर किसलिए अपनी राहें अलग हो।
मिटा दे दूसरों के लिए खुद की जिंदगी,
यही हम सबकी जिंदगी का सबक हो ।
कितना सुंदर हो जाएगा तब अपना जहां,
खुशबू के रंग जमी पर बरसाएगा आसमा।
दिलों मे प्यार के फूल खिलने लगेगें,
चमन मे अमन के गीत बजने लगेगे।
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

तुम साथ चलो तो

ग़म की तड़पाती धूप नही
खुशियों की रिमझिम होगी,
तुम साथ चलो तो जीवन की
हर मंजिल मुमकिन होगी।
सूरज की किरणों के पंछी
गीत वफा के गायेगे,
चाँद खिलेगा मुखड़े पर
चाहत की टिम टिम होगी।
सात सुरों की सरगम का
संगीत दुआयेँ देगा,
तनहाई का शोर नही जब
पायल की छ्म-छम होगी।
जब हालात की साज़िश से
सब रिश्ते नाते-टूटेंगे,
एक साथ तुम्हारा होगा
और उम्मीदों की महफिल होगी।
……………देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

सारे जग मे अपनी पहचान बनाना है

सारे जग मे अपनी पहचान बनाना है,
फूलों से कलियों से मुस्कान चुराना है।
ग़म की वादी को हम खुशियों से सजाएगें,
हर दिल मे मोहब्बत का एक फूल खिलाएगें
अरमानों के गुलशन को सपनों से सजाना है।
काँटों भरे जीवन मे हर ग़म को झलेंगे,
अंगारों की सेजों पे बिन आह के सो लेंगे।
चाँद सी शीतलता धरती पे लाना है ।
राहें अपनी आसान नहीं
मंजिल से पहले आराम नहीं,
इन राहों पे हमको चलना है
हर दर्द की धूप को सहना है।
जीवन की सांझ से पहले मंजिल तक जाना है।
कुछ हो न मगर इस दुनिया मे
ये गीत हमारे रह जायगे,
दिल की आंखो से देखना तुम
हम दिल मे तुम्हारे आएगे।
जो गीत ये हमने गाया है अब तुमको गाना है।
………………………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

गुरु दक्षिणा

"गुरु" अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अज्ञान का नाश करने वाला । गुरु जीवन यात्रा मे पथ प्रदर्शक है,बिना गुरु के यात्रा संभव नहीं है ,गुरु अपने ज्ञान का अप्रतिम अंश शिष्य को देकर समाज के लिए नयी संभावनाओ के द्वार खोलता है । गुरुओं द्वारा दिखाये गए मार्ग का अनुसरण ही सच्ची गुरु दक्षिणा है। 

जीवन है एक कठिन सफ़र
तुम पथ की शीतल छाया हो
अज्ञान के अंधकार मे
ज्ञान की उज्जवल काया हो,
तुम कृपादृष्टि फेरो जिसपे
वह अर्जुन सा बन जाता है ।
जो पूर्ण समर्पित हो तुममे
वह एकलव्य कहलाता है।
जब ज्ञान बीज के हृदय ज्योति से
कोई पुष्प चमन मे खिलता है,
मत पूछो उस उपवन को
तब कितना सुख मिलता है ।
हर सुमन खिल उठे जीवन का
यह सुंदर ध्येय तुम्हारा है,
कर्तव्य मार्ग की बाधा से
नित तुमने हमे उबारा है ।
किन्तु सच्चाई के विजय ज्ञान की
जो कहती हमे कहानी है,
आज भला उन आंखो से
छलक रहा क्यों पानी है !
पीड़ा का आँसू बोल पड़ा
धीरज के बंधन तोड़ पड़ा,
जिनको सिखलाया सदाचार
वो अनाचार के साथ चल रहे,
जिनको दिखलाया धर्म मार्ग
वो अधर्म मार्ग की ओर बढ़ रहे ।
कैसी है ये गुरु भक्ति !
और कैसी है ये गुरु दक्षिणा ?
यह सोच रही उन आंखो मे
एक दर्द भरी हैरानी है
यदि शाप ग्रस्त इस धरती को
पाप मुक्त कर देना है
तो छोड़ अधर्म की राह तुम्हें
सत्पथ पर चल देना है
सत्य धर्म की राह पर
तुम जितने कदम बढ़ाओगे
हमसे मिली शिक्षा का
तुम उतना मान बढ़ाओगे
बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा
बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा । ।
……………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

प्रेरणा


सूरज की किरणों का कलियों से नाता क्या है
प्रीत की पवित्र पावन प्रेरणा से पूछना,
धरती की पीड़ा समझे बादलों का देश कैसे
सावन मन-भावन सुहावन से पूछना,
नम है नयन किन्तु मन है प्रसन्न क्यों
कमनीय कामिनी की कामना से पूछना,
चेतना का रवि निस्तेज क्यों है गगन मे
करबद्ध कविता की भावना से पूछना।
कितना अनोखा है ये जीवन का खेल देखो
धरती भी झूम रही अंबर भी झूम रहा,
बुझते दिये की लौ तेज हो गयी है जैसे
किरणों का पुंज नए आगमन को पूज रहा,
इठलाती नदी मिली सागर से जा के जब
वारिधि का रूप धर अंबर को चूम रहा,
कितने ही दृश्य यहाँ बिखरे हैं जीवन के
सिर को झुकाये तू किस प्रेरणा को ढूंढ रहा।

… …………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

एहसास


क्या मालूम था मीलों तक
यूँ पसरा सन्नाटा होगा
मेरे दिल से तेरे दिल तक
कुछ तो आता जाता होगा

मुड़कर मेरी ओर न देखा
उसने दूर जाने के बाद
मुमकिन हैं वहां कोई
उसका साथ निभाता होगा

घुटनों के बल झुक कर जब
कुछ बच्चों से बातें की
तब जाना कि तेरे दर पे
क्यों वह सर झुकाता होगा

माना कि उस ताकतवर की
जिद के आगे सब बेबस हैं
पर कोई तो डर होगा
जो उसको धमकाता होगा

आओ मिलकर रहने की
फिर एक कोशिश कर लेते हैं
मेरी तरह तेरा दिल भी
तुमको यह समझाता होगा।

..देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”




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