Sunday 14 February 2016

तन्हाई

तन्हाई

तन्हाई से अपने रिश्ते को
मै कैसे झूठा बोलूं
लौट शाम जब घर आऊं तो
मै खुद ही दरवाजा खोलूं
तेरे मेरे दिल तक जो
एक पगडण्डी सी दिखती है
उस पर अपनी नजर टिकाए
हर पल अपना हृदय टटोलूं
जज्बातों के कारीगर तुम
कुछ पल रुक जाओ तो बेहतर
अश्कों का दरिया भीतर है
थोड़ा तो मै खुलकर रोलूं
मेरा दामन थामे जो
मयख़ाने तक ले आया है
क्यों ना उसकी खातिर मै
ग़म के प्याले भी पी लूं
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Wednesday 3 February 2016

जीवन सहज सरल है साथी

जीवन सहज सरल है साथी

कभी चाँदनी की रिमझिम में
सपनों की कलियाँ महकाती,
कभी विरह की करुण वेदना
मे है रात गुजर जाती,
दोनों ही परिस्थितियों में
साथ नही होते हो तुम
फिर क्यों एक में खुशियाँ हैं
और दूजे में है ग़म ही ग़म।
माया मन का आलिंगन कर
सुख दुःख के हैं दृश्य दिखाती
जीवन सहज सरल है साथी।
लक्ष्य बृहद है ,मार्ग कठिन है,
है समय प्रतिकूल
धैर्य चित्त के चौराहे पर
मार्ग गया है भूल,
विमुख हुआ मन संकल्पों से
शिथिल पड़ी है काया,
अज्ञान का आश्रय ले
मेघ तिमिर का छाया,
परम पुनीत पवित्र प्रबल है
किन्तु लक्ष्य की सृष्टि,
जागृत हुआ विवेक
प्रखर हो गई धैर्य की दृष्टि ,
पथ प्रशस्त है ,लक्ष्य प्रकाशित
दूर हुई अज्ञानता,
साहस मुखर हुआ सम्मुख
दृढ हुई एकाग्रता,
है विस्मय अंतर्मन में
यह भेद समझ न आया ,
लक्ष्य ने साधा साधक को
या साधक ने लक्ष्य बनाया,
सत्य प्रतिष्ठित कर कण कण में
प्रकृति स्वयं है भेद मिटाती।
जीवन सहज सरल है साथी।

…………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

Tuesday 2 February 2016

हत्यारे

हत्यारे

चुप क्यों है तू हत्यारे
क्यों की तूने हत्या रे।
स्तब्ध धरा अम्बर जल तारे
यह घर कैसा जलता रे।
जो ना इसको अपनाना था
तो कह देते अपना ना था।
जीते जी क्यों हमको मारे
रो रो पूछ रही है माँ रे।
बात वही जो जमी नही
कि वजह हुई फिर जमीन ही।
बाग़ बगीचे आँगन सहमे
क्या पाया तू ऐसी शह में।
अब तेरा साम्राज्य रहेगा
पर न इस सम राज्य रहेगा।
देर न कर अब हत्यारे
कर मेरी भी हत्या रे।
…………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”