Monday 19 February 2024

आ जाओ मेरी पनाह में

 कुछ अनजानी तस्वीरों में

हम खुद को ढूँढा करते हैं

जो कुछ खाली सा दिखता है

वो तुमसे पूरा करते हैं।

पाने की चाहत होगी

फिर खो देने का डर होगा

मै ही तुम हो यह समझा दो

न मंजिल होगी न सफ़र होगा ।


दरवाजे को दस्तक की

चौखट पर कल रोता पाया

रूठे लम्हों की सर्द हवाओं

तुमने कितना तड़पाया ।


जब से तुमसे दूरी रख ली

हंसने की मजबूरी रख ली

सब कुछ तेरा लौटाया बस

ग़म एक चीज जरूरी रख ली।

अफ़सोस करो इल्ज़ाम न दो

तुम भी शामिल इस गुनाह में

मुझको पनाह दे दो या फिर

आ जाओ मेरी पनाह में।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

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