प्रयाग से सारनाथ
हर कदम पे
साथ साथ
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली
भक्ति की बयार मे
हंसी खुशी के सार मे
मौज की फुहार मे
दोस्ती मे प्यार मे
हर्ष से भरी हुई
डगर डगर
गली गली
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली
किसने किया ये प्रचार
कौन था सूत्र धार
किस हृदय की आस थी
कैसे हुई ये साकार
विवेक मे,विचार मे
जहां जहां शमा जली
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली
यात्रा का प्रथम पड़ाव
शांति का सुंदर लिखाव
ज्ञान का प्रमान है ये
कौन सा स्थान है ये
पवित्र सत्कर्म की
महान जैन धर्म की
परम पूज्य तपस्थली
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली
अद्भुत अलौकिक मनोहर
मानव निर्मित
सुंदर शिखर
जीवन के
नैतिक मूल्यों की
कल कल बहती
सरिता निर्झर
ऋषभदेव के
चरणों मे
अर्पण करके
पुष्पांजलि
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली
सुंदर सरल
सत्य अविनाशी
शिव की महिमा
गाती काशी
जीवन में दुख,
दुख में जीवन
हे शिव करना
कृपा जरा सी
हम सब तेरे
सम्मुख आये
ज्ञान पुंज के
दीप जलाए
दया हृदय में
करुणा भर दे
आत्म बोध का
अनुपम वर दे
सारनाथ से
हृदयों में
लेकर अभिनव
गीतांजलि
झूमते हुए चली
अपनी मित्र मंडली।
स्मरण:- कॉलेज के दिनों में मित्रो/सहपाठियों के साथ प्रयाग से सारनाथ (बनारस) तक की यात्रा,जैन मंदिर धाम “तपस्थली”
होते हुए बेहद सुखद और आनंददायी रही। मित्रों संग अपनी सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत का अवलोकन निश्चय ही सौभाग्य से मिलता है ।
देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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