Saturday 16 January 2016

ग़म के फूल- एक अनुभव

कुछ दिनों पहले मैंने गुलाब का एक पौधा लगाया और उसकी देखभाल की।आज उसमे एक फूल खिला है।
फूल को खिला देख आनंद की अनुभूति होती है,मै स्वंय उस आनंद का साक्षी हूँ या यूँ कहे कि मैंने उसका अनुभव किया।
यह सब मैंने इसलिए किया क्योंकि मैं शायद जानता हूँ कि आनंद मेरे भीतर ही है,क्योंकि मैं उसे सरलता से अनुभव नही कर पाया इसलिए मैंने 
दूसरा साधन किया एक पौधा रोपण करके,और अपने भीतर के आनंद को उसमे प्रोजेक्ट करके उसको अनुभव किया। यह संसार भी शायद ऐसा ही है.....

जब ग़म के बादल मंडराए
नैना सावन से भर आये
तब पीड़ा का बीज बनाकर
एक उपवन में बो देता हूँ
और फिर थोड़ा रो लेता हूँ
ग़म का बादल छंट जाता है
बोझ हृदय का घट जाता है।
अश्रुधार का अध्यारोपण
पीड़ा का यह पुष्प निरूपण
ग़म के काँटों का आश्रय ले
खुशबू के संग खिल जाता है।
मन बिछड़े आनंदों से नित
हंसकर जैसे मिल जाता है।
………….
देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”


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