Thursday 21 January 2016

मै और हम

मै और हम

फिर वही दुनिया है वही दुनिया की रस्म है,

मै है और मै की चौखट पर बाहें फैलाये हम है

मै एक ख्याल है, एहसास है आजादी का

तन्हा है अकेला है, मिसाल है आबादी का।

इश्क़ के उजाले में हम को देखता है

और हम के नगर की डगर चुन लेता है।

मै की ये बेचैनी हम को रास आती है

मन को जो भाये वही रंग दिखाती है

मै निज मन से हार,बेबस सा लाचार

आकाँक्षाओं के सिंधु में उतर जाता है

और विरह का हिमांचल मोहब्बत  के मेघ सा

मधुर मिलन की पावन सरिता में ढल जाता है

तन्हाई का जुगनू कहीं खो जाता है

मै मै नही रहता हम हो जाता है।

फिर वही दुनिया है और दुनिया का खेल है

मै है हम है और दांव पर दोनों का मेल है।


………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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