Friday 22 January 2016

मधुमास

मधुमास

सुन बसंत हे मधुमास
इस बार न जल्दी आना तुम
प्रियतम मुझसे दूर हुए हैं
अबके न सताना तुम
हाथों की मेंहदी रूठी है
काज़ल रहा है ताने मार
बिंदिया चमक उठी लाली पर
आंख तरेरे है गलहार
नैनों के संग प्रीत लगाकर
सावन मत बन जाना तुम।
चहकूं कैसे अब मै बोलो
मन का पंछी साथ ले गये
दिन के उत्सव सुने कर
अरमानों की रात ले गए
संभव है स्मृतियों के
झूले पर उनके संग रहूं
मन के दरवाजे पर आकर
कुण्डी न खटकाना तुम।
…………..देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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