Tuesday 29 December 2015

जाओ प्रियतम अपने पथ पर

जाओ प्रियतम अपने पथ पर

आँसू आहें विरह के पल,
घूंट गमों के पी लूँगी;
जाओ प्रियतम अपने पथ पर
मेरा क्या मै जी लूँगी।
वो मधुमास की बात पुरानी,
जब सपनों के दीप जले थे;
चलते फिरते पगडंडी पर,
यहीं कहीं हम तुमसे मिले थे;
अरमानों की पर्णकुटी का
तिनका तिनका मेरा था,
चूल्हा चौखट खिड़की आँगन,
सब मे तेरा चेहरा था।
स्मृति की किलकारी का मुख
सन्नाटे से सी दूँगी।
जाओ प्रियतम अपने पथ पर
मेरा क्या मै जी लूँगी।
अपनी मनस्कृति मे मै,
प्रतिबिंब तुम्हारा रखती हूँ;
छोड़ो संशयअब संशय मे भी,
तुम जैसी ही दिखती हूँ;
निज कुल के गौरव का तुमने,
जो सफल संधान किया है;
मन क्रम वचन पुनीत से मैंने
उसका ही विधान किया है।
जैसे तुम रखते हो सब कुछ
मै वैसे ही रख लूँगी।
जाओ प्रियतम अपने पथ पर
मेरा क्या मै जी लूँगी।
बूढ़े पीपल को जब मै
जल अर्पण करने जाऊँगी,
अपने सारे सत्कर्मों का
संबल तुझ तक लाऊँगी।
तुम अपने नैनो मे,
मेरी यादों की प्रतिमा रखना;
मै पूजा की थाल लिए
सालों सदियाँ जी जाऊँगी।
अपने ईश्वर से मैं अपने
ईश्वर की सुध ले लूँगी।
जाओ प्रियतम अपने पथ पर
मेरा क्या मै जी लूँगी ।
…………………. देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’

No comments:

Post a Comment