Wednesday 3 February 2016

जीवन सहज सरल है साथी

जीवन सहज सरल है साथी

कभी चाँदनी की रिमझिम में
सपनों की कलियाँ महकाती,
कभी विरह की करुण वेदना
मे है रात गुजर जाती,
दोनों ही परिस्थितियों में
साथ नही होते हो तुम
फिर क्यों एक में खुशियाँ हैं
और दूजे में है ग़म ही ग़म।
माया मन का आलिंगन कर
सुख दुःख के हैं दृश्य दिखाती
जीवन सहज सरल है साथी।
लक्ष्य बृहद है ,मार्ग कठिन है,
है समय प्रतिकूल
धैर्य चित्त के चौराहे पर
मार्ग गया है भूल,
विमुख हुआ मन संकल्पों से
शिथिल पड़ी है काया,
अज्ञान का आश्रय ले
मेघ तिमिर का छाया,
परम पुनीत पवित्र प्रबल है
किन्तु लक्ष्य की सृष्टि,
जागृत हुआ विवेक
प्रखर हो गई धैर्य की दृष्टि ,
पथ प्रशस्त है ,लक्ष्य प्रकाशित
दूर हुई अज्ञानता,
साहस मुखर हुआ सम्मुख
दृढ हुई एकाग्रता,
है विस्मय अंतर्मन में
यह भेद समझ न आया ,
लक्ष्य ने साधा साधक को
या साधक ने लक्ष्य बनाया,
सत्य प्रतिष्ठित कर कण कण में
प्रकृति स्वयं है भेद मिटाती।
जीवन सहज सरल है साथी।

…………………..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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