Sunday 14 February 2016

तन्हाई

तन्हाई

तन्हाई से अपने रिश्ते को
मै कैसे झूठा बोलूं
लौट शाम जब घर आऊं तो
मै खुद ही दरवाजा खोलूं
तेरे मेरे दिल तक जो
एक पगडण्डी सी दिखती है
उस पर अपनी नजर टिकाए
हर पल अपना हृदय टटोलूं
जज्बातों के कारीगर तुम
कुछ पल रुक जाओ तो बेहतर
अश्कों का दरिया भीतर है
थोड़ा तो मै खुलकर रोलूं
मेरा दामन थामे जो
मयख़ाने तक ले आया है
क्यों ना उसकी खातिर मै
ग़म के प्याले भी पी लूं
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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