Tuesday 2 February 2016

हत्यारे

हत्यारे

चुप क्यों है तू हत्यारे
क्यों की तूने हत्या रे।
स्तब्ध धरा अम्बर जल तारे
यह घर कैसा जलता रे।
जो ना इसको अपनाना था
तो कह देते अपना ना था।
जीते जी क्यों हमको मारे
रो रो पूछ रही है माँ रे।
बात वही जो जमी नही
कि वजह हुई फिर जमीन ही।
बाग़ बगीचे आँगन सहमे
क्या पाया तू ऐसी शह में।
अब तेरा साम्राज्य रहेगा
पर न इस सम राज्य रहेगा।
देर न कर अब हत्यारे
कर मेरी भी हत्या रे।
…………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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