वो मेरा है
उसने कहा
बार बार
कई बार
कभी गीत गज़ल
कभी गुलाब लिए
कभी अलंकरण कभी
प्रेम की किताब लिए
मेरी ज़ुल्फ़ों को घटा
चेहरे को कमल कहता
मैं जो हँस दूं
बहारों को मुकम्मल कहता
प्रेम की बारिशों में
बूँद बूँद बरसा है
मेरी ख्वाहिश में
हर दिन हर लम्हा
तरसा है।
आज जबकि मै
उसकी हूँ वो मेरा है
जाने क्यों खाली है इमारत
और अँधेरा है
शामिल है,हासिल है
पर वो एहसास नही है
वो है उसका “वक़्त”
मेरे पास नही है।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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