Monday 19 February 2024

बीटेक के चार वर्ष

किसी नयी मंजिल की ओर

पहला कदम रखते हुए,

बीटेक की आखिरी सीढ़ियों से

उतरते हुए…

दिल के किसी कोने मे

सपनों के बिछोने मे,

बीते हुए पलों का मधुर संगीत,

किसी पुराने बरगद की

शीतल छाँव की भांति,

अपने साये मे कुछ देर और

ठहर जाने का निवेदन कर रहा है।

और इस निवेदन के प्रकाश मे चमकते,

पिछले चार वर्ष बड़े गर्व से

मेरे जीवन मे अपने वर्चस्व की

व्याख्या कर रहे हैं।।

रिमझिम बरसात है

अभी कल ही की तो बात है।

अपने बस स्टॉप पे खड़े हम लोग,

कॉलेज बस का इंतजार कर रहे हैं;

और रैगिंग पर उठने वाले वाद-विवाद से

रोमांचित हो रहे हैं।

वहीं हुमसे कुछ दूर खड़ा

जाने किस बात पर अड़ा,

सीनियर्स का एक समूह

रह-रह कर चिल्ला रहा है;

और रैगिंग की विभिन्न योजनाए

बना रहा है।

अद्भुत मुलाक़ात है

अभी कल ही की तो बात है।

कॉलेज बस के अंदर

हम लोग जैसे बंदर,

सीनियर्स रूपी मदारी के हाथों की

कठपुतली की भांति कूद रहे हैं;

और जाने अनजाने एक दूसरे

के कानो मे अपनी-अपनी प्रतिभा

के मंत्र फूँक रहे हैं।

वो देखो ”हिमांशु” मूँगफली बेच रहा है,

और “मेहदी” गाने गा के सबका

ध्यान खीच रहा है;

परिचय दे देकर “राजकुमार” बेहाल है

सबसे जुदा मगर “कृष्णा” की चाल है ।

चंचल प्रभात है

अभी कल ही की तो बात है।

कॉलेज बस मे गूँजते नारे,

नैनी ब्रिज पर गंगा मैया के जयकारे,

बाहर खड़े लोगों का

ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं;

और उल्लास की आभा मे दमकते चेहरे

अपने आनंद की कहानी कह रहे हैं।

“अनंत जी का जोश

नया गुल खिला रहा है,

सारे चुप हो जाओ

देखो “बाँके लाल” आ रहा है।

क्या अजीब इत्तेफाक़ है

अभी कल ही की तो बात है ।

“वैभव शर्मा” अपने मोटापे से परेशान है,

कहता है योग करो तो

सब मुश्किल आसान है।

“अर्चना” और “पूजा” का

गोल-गप्पे खाने का प्लान है,

पर उन्हे शायद पता नहीं

आज बंद दुकान है ।

मौज मस्ती की सौगात है

अभी कल ही की तो बात है।

किसी क्लास मे कोई टिफिन खुला है

पर ये क्या ! टिफिन जिसका है

उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला है।

इधर “अपूर्व” के चुटकुलों का

एक दौर चला है

लगता है अपना पूरा कॉलेज ही चुटकुला है।

“स्वप्निल सर” कह रहे

कि “धीरज” होशियार है,

सब उसकी बात मानो

वो क्लास का सी-आर है।

अब “धीरज” कहेगा,

तभी क्लास मे आएंगे

नहीं तो सारे लोग बँक पे जाएगे।

फ्री पीरियड है

चलो लाइब्रेरी बुला रही है

“अपूर्व”की टोली वहाँ भी

महफिल सजा रही है।

“शुचिता” “रहमान” के

किस्से सुना रही है,

और आलसी अनिल को

नींद आ रही है ।

“उपाध्याय” अपने ज्ञान कुंज से

ज्ञान के कुछ पुष्प लाया है,

और हमारी नीरस निरर्थक वार्ता को

सरस सार्थक बनाया है ।

उधर “हिमांशु” और “दीपिका” मे

हो रही लड़ाई,

“अर्चना” ने “धीरज” को पकड़ा

तो उसकी शामत आयी।

जाने किस विचार मे

डूबें हैं “पवन भाई”,

आलू खा कर “इंस्पेक्टर” ने है

खूब धूम मचाई।

Exams आ गए है

अभी तक की नहीं पढ़ाई,

पर सेमेस्टर exams की

परवाह किसको है भाई!

हम तो चले चाचा की

गुमटी के तले,

जिनको है परवाह

वो हमारे हिस्से का भी पढ़े।

हम तो exams से एक दिन पहले

किताब खरीदने जाएगे

मिल गयी तो ठीक है

नहीं तो तक़दीर आजमाएगे ।

महके हुए जज़्बात हैं

अभी कल ही कि तो बात है ………

“वैभव” ”सुमित” और “तृप्ति” अपने

रिश्ते को एक नया नाम दे रहे हैं,

और अपनी दोस्ती को

एक नया आयाम दे रहे है।

निधि ने अपनी क्लास मे

एक मंच सजाया है

जहां सब ने सब की खातिर

कोई गीत गुनगुनाया है।

ये गीत ही कल प्रीत की

प्रभा मे काम आएंगे।

और रूठे हुए अपने

मनमीत को मनाएगे।

और और रूठे हुए अपने

मनमीत को मनाएगे।।

———देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

स्मृतियाँ-यह कविता कॉलेज के आखिरी दिन की भावनाओं से प्रेरित है जब हम मित्रगण एक साथ कॉलेज मे चार साल गुजारे पलों को याद करते एक दूसरे से विदा ले रहे थे ।

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