तन्हाई
तन्हाई से अपने रिश्ते को
मै कैसे झूठा बोलूं
लौट शाम जब घर आऊं तो
मै खुद ही दरवाजा खोलूं
मै कैसे झूठा बोलूं
लौट शाम जब घर आऊं तो
मै खुद ही दरवाजा खोलूं
तेरे मेरे दिल तक जो
एक पगडण्डी सी दिखती है
उस पर अपनी नजर टिकाए
हर पल अपना हृदय टटोलूं
एक पगडण्डी सी दिखती है
उस पर अपनी नजर टिकाए
हर पल अपना हृदय टटोलूं
जज्बातों के कारीगर तुम
कुछ पल रुक जाओ तो बेहतर
अश्कों का दरिया भीतर है
थोड़ा तो मै खुलकर रोलूं
कुछ पल रुक जाओ तो बेहतर
अश्कों का दरिया भीतर है
थोड़ा तो मै खुलकर रोलूं
मेरा दामन थामे जो
मयख़ाने तक ले आया है
क्यों ना उसकी खातिर मै
ग़म के प्याले भी पी लूं
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
मयख़ाने तक ले आया है
क्यों ना उसकी खातिर मै
ग़म के प्याले भी पी लूं
……………….देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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